Saturday 2 May 2020

Banda singh Bahadur वीर योद्धा बन्दा सिंह बहादुर


 कहानी एक राजपूत वीर की जिसने प्रथम सिख
साम्राज्य की नीव रखी.ये पंजाब के पहले ऐसे
सेनापति थे जिन्होंने मुगलो के अजय होने का
भ्रम तोडा,
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हम बात कर रहे है वीर बंदा सिंह बहादुर की,
बाबा बन्दा सिंह बहादुर का जन्म कश्मीर
स्थित पुंछ जिले के राजौरी क्षेत्र में 1670 ई.
तदनुसार विक्रम संवत् 1727, कार्तिक शुक्ल
13 को हुआ था। वह राजपूतों के (मिन्हास)
भारद्वाज गोत्र से सम्बद्ध था और उसका
वास्तविक नाम लक्ष्मणदेव था। 15 वर्ष की
उम्र में वह जानकीप्रसाद नाम के एक बैरागी
का शिष्य हो गया और उसका नाम माधोदास
पड़ा। तदन्तर उसने एक अन्य बाबा रामदास
बैरागी का शिष्यत्व ग्रहण किया और कुछ समय
तक पंचवटी (नासिक) में रहे । वहाँ एक
औघड़नाथ से योग की शिक्षा प्राप्त कर वह
पूर्व की ओर दक्षिण के नान्देड क्षेत्र को चला
गये जहाँ गोदावरी के तट पर उसने एक आश्रम
की स्थापना की।
जब गुरु गोविन्द सिंह जी की मुगलो से पराजय
हुयी और उनके दो सात और नौ वर्ष के शिशुओं
की नृशंस हत्या कर दी गयी इससे विचलित
होकर वे दक्षिण की और चले गए 3 सितंबर,
1708 ई. को नान्देड में सिक्खों के दसवें गुरु
गुरु गोबिन्द सिंह ने इस आश्रम को देखा और वह
वो लक्ष्मण देव (बंदा बहादुर) से मिले और उन्हें
अपने साथ चले के लिए कहा और उपदेश दिया की
“”राजपूत अगर सन्याशी बनेगा तो देश धर्म
को कौन बचाएगा राजपूत का पहला कर्तव्य
रक्षा करना है”” “”गुरुजी ने उन्हें उपदेश
दिया अनाथ अबलाये तुमसे रक्षा की आशा
करती है, गो माता मलेछों की छुरियो क़े नीचे
तडपती हुई तुम्हारी तरफ देख रही है, हमारे
मंदिर ध्वस्त किये जा रहे है, यहाँ किस धर्म की
आराधना कर रहे हो तुम एक बीर अचूक धनुर्धर,
इस धर्म पर आयी आपत्ति काल में राज्य छोड़कर
तपस्वी हो जाय??"
पंजाब में सिक्खों की दारुण यातना तथा गुरु
गोबिन्द सिंह के सात और नौ वर्ष के शिशुओं की
नृशंस हत्या ने लक्ष्मण देव जी को अत्यन्त
विचलित कर दिया। गुरु गोबिन्द सिंह के आदेश
से ही वह पंजाब आये, गुरु गोविन्द सिंह ने स्वयं
उन्हें अपनी तलवार प्रदान की गुरु गोविन्द
सिंह ने उन्हें नया नाम बंदा सिंह बहादुर दिया
और लक्ष्मण देव हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए
सिख धरम में दीक्षित हुए.
छद्म वेशी तुर्कों ने धोखे से गुरुगोविन्द सिंह की
हत्या करायी, बन्दा को पंजाब पहुचने में लगभग
चार माह लग गया सभी शिक्खो में यह प्रचार
हो गया की गुरु जी ने बन्दा को उनका
जत्थेदार यानी सेनानायक बनाकर भेजा है,बंदा
के नेत्रत्व में वीर राजपूतो ने पंजाब के किसानो
विशेषकर जाटों को अस्त्र शस्त्र चलाना
सिखाया,उससे पहले जाट खेती बाड़ी किया
करते थे और मुस्लिम जमीदार(मुस्लिम
राजपूत)इनका खूब शोषण करते थे,देखते ही देखते
सेना गठित हो गयी.
इसके बाद बंदा सिंह का मुगल सत्ता और पंजाब
हरियाणा के मुस्लिम जमीदारों पर जोरदार
हमला शुरू हो गया। मई, 1710 में उसने
सरहिंद को जीत लिया और वहां के नवाब जिसने
गुरु गोविन्द सिंह के परिवार पर जुल्म ढाए थे
उसे सूली पर लटका दिया,सरहिंद की सुबेदारी
सिख राजपूत बाज सिंह पवार को दी गयी,और
सतलुज नदी के दक्षिण में सिक्ख राज्य की
स्थापना की। उसने खालसा के नाम से शासन भी
किया और गुरुओं के नाम के सिक्के चलवाये। बंदा
सिंह ने पंजाब हरियाणा के एक बड़े भाग पर
अधिकार कर लिया और इसे उत्तर-पूर्व तथा
पहाड़ी क्षेत्रों की ओर लाहौर और अमृतसर की
सीमा तक विस्तृत किया।बंदा सिंह ने
हरियाणा के मुस्लिम राजपूतो(रांघड)का दमन
किया और उनके जबर्दस्त आतंक से जाटों को
निजात दिलाई.यहाँ मुस्लिम राजपूत जमीदार
जाटों को कौला पूजन जैसी घिनोनी प्रथा का
पालन करने पर मजबूर करते थे और हरियाणा के
कलानौर जैसे कई हिस्सों में आजादी के पहले तक
ये घिनोनी प्रथा कायम रही.
बंदा सिंह बहादुर का सहारनपुर पर
हमला----------
यमुना पार कर बन्दा सिंह ने सहारनपुर पर भी
हमला किया,सरसावा और चिलकाना अमबैहटा
को रोंदते हुए वो ननौता पहुंचा,ननौता में पहले
कभी गुज्जर रहते थे जिन्हें मुसलमानों ने भगा कर
कब्जा कर लिया था,जब गूजरों ने सुना कि
बन्दा सिंह बहादुर नाम के सिख राजपूत बड़ी
सेना लेकर आये हैं तो उन्होंने ननौता के
मुसलमानों से हिसाब चुकता करने के लिए बंदा
सिंह से गुहार लगाई,और बन्दा सिंह से कहा कि
हम गुज्जर भी नानकपंथी हैं।बन्दा सिंह ने
उनकी फरियाद मानते हुए ननौता पर जोरदार
हमला कर इसे तहस नहस कर दिया,सैंकड़ो
मुस्लिम मारे गए,तब से ननौता का नाम फूटा
शहर पड़ गया.
इसके बाद बंदा सिंह ने बेहट के पीरजादा जो
गौकशी के लिए कुख्यात थे उन पर जोरदार
हमला कर समूल नष्ट कर दिया,यहाँ के लोकल
राजपूतो ने बंदा सिंह बहादुर का साथ
दिया.इसके बाद बंदा सिंह ने रूडकी पर भी
अधिकार कर लिया.........
बन्दा सिंह का जलालाबाद(मुजफरनगर)पर
हमला----
मुजफरनगर में जलालाबाद पहले राजा मनहर
सिंह पुंडीर का राज्य था और इसे मनहर खेडा
कहा जाता था। इनका ओरंगजेब से शाकुम्भरी
देवी की और सडक बनवाने को लेकर विवाद हुआ।
इसके बाद ओरंगजेब के सेनापति जलालुदीन पठान
ने हमला किया और एक ब्राह्मण ने किले का
दरवाजा खोल दिया। जिसके बाद नरसंहार में
सारा राजपरिवार परिवार मारा गया।
सिर्फ एक रानी जो गर्भवती थी और उस समय
अपने मायके में थी,उसकी संतान से उनका वंश आगे
चला और मनहरखेडा रियासत के वंशज आज
सहारनपुर के भावसी,भारी गाँव में रहते हैं,
इस राज्य पर जलालुदीन ने कब्जा कर इसका
नाम जलालाबाद रख दिया।ये किला आज भी
शामली रोड पर जलालाबाद में स्थित है।
जलालाबाद के पठानो के उत्पीडन की शिकायत
बन्दा सिंह पर गई और कुछ दिन बाद ही इस
एरिया के पुंडीर राजपूतो की मदद से
जलालाबाद पर बन्दा बहादुर ने हमला
किया.बीस दिनों तक सिखो और पुंडीर
राजपूतो ने किले का घेरा रखा,यह मजबूत किला
पूर्व में पुंडीर राजपूतो ने ही बनवाया था ,इस
किले के पास ही कृष्णा नदी बहती थी,बंदा
बहादुर ने किले पर चढ़ाई के लिए सीढियों का
इस्तेमाल किया, रक्तरंजित युद्ध में जलाल खान
के भतीजे ह्जबर खान,पीर खान,जमाल खान और
सैंकड़ो गाजी मारे गए,जलाल खान ने मदद के
लिए दिल्ली गुहार लगाई,
दुर्भाग्य से उसी वक्त जोरदार बारीश शुरू हो
गई,और कृष्णा नदी में बाढ़ आ गई,वहीँ दिल्ली से
बहादुर शाह ने दो सेनाएं एक जलालाबाद और
दूसरी पंजाब की और भेज दी,पंजाब में बंदा की
अनुपस्थिति का फायदा उठा कर मुस्लिम
फौजदारो ने हिन्दू सिखों पर भयानक जुल्म शुरू
कर दिए,इतिहासकार खजान सिंह के अनुसार
इसी कारण बंदा बहादुर और उसकी सेना ने
वापस पंजाब लौटने के लिए किले का घेरा
समाप्त कर दिया,और जलालुदीन पठान बच
गया,
बंदा सिंह बहादुर का दुखद अंत-----
लगातार बंदा सिंह की विजय यात्रा से मुगल
सत्ता कांप उठी,और लगने लगा कि भारत से
मुस्लिम शासन को बंदा सिंह उखाड़ फेंकेगा,अब
मुगलों ने सिखों के बीच ही फूट डालने की नीति
पर काम किया,उसके विरुद्ध अफवाह उड़ाई गई
कि बंदा सिंह गुरु बनना चाहता है और वो सिख
पंथ की शिक्षाओं का पालन नहीं करता,खुद गुरु
गोविन्द सिंह जी की पत्नी से भी बंदा सिंह के
विरुद्ध शिकायते की गई,जिसका परिणाम यह
हुआ कि ज्यादातर सिख सेना ने उसका साथ छोड़
दिया,जिससे उसकी ताकत कमजोर हो गयी,तब
बंदा सिंह ने मुगलों का सामना करने के लिए
छोटी जातियों और ब्राह्मणों को भी सैन्य
प्रशिक्षण दिया,
1715 ई. के प्रारम्भ में बादशाह फर्रुखसियर
की शाही फौज ने अब्दुल समद खाँ के नेतृत्व में
उसे गुरुदासपुर जिले के धारीवाल क्षेत्र के
निकट गुरुदास नंगल गाँव में कई मास तक घेरे
रखा। खाद्य सामग्री के अभाव के कारण उसने 7
दिसम्बर को आत्मसमर्पण कर दिया। फरवरी
1716 को 794 सिक्खों के साथ वह वीर सिख
राजपूत दिल्ली लाया गया,उससे कहा गया कि
अगर इस्लाम धर्म गृहण कर ले तो उसे माफ़ कर
दिया जाएगा,मगर उस वीर राजपूत ने ऐसा
करने से इनकार कर दिया,जिसके बाद उसके पुत्र
का कलेजा निकाल कर बंदा सिंह के मुह में ठूस
दिया गया,मगर वो सिख यौद्धा बंदा सिंह
अविचलित रहा,फिर जल्लादों ने उसके शरीर से
मांस की बोटी बोटी नोच कर निकाली,5
मार्च से 13 मार्च तक प्रति दिन 100 की
संख्या में सिक्खों को फाँसी दी गयी। 16 जून
को बादशाह फर्रुखसियर के आदेश से बन्दा सिंह
तथा उसके मुख्य सैन्य-अधिकारियों के शरीर
काटकर टुकड़े-टुकड़े कर दिये गये।
बंदा सिंह बहादुर की सैन्य सफलताओं के
परिणाम----
1-सिंह बहादुर ने थोड़े ही समय में मुगल सत्ता
को तहस नहस कर दिया,जिससे दक्षिण भारत से
मराठा शक्ति को उत्तर भारत में बढ़ने का
मौका मिला,
2-उसके बलिदान ने सिख पंथ को नया
जीवनदान दिया,पंजाब में मुगल सत्ता इतनी
कमजोर हो गयी कि आगे चलकर सिख मिसलो ने
पुरे पंजाब पर अधिकार कर लिया.
3-बंदा सिंह ने हरयाणा पंजाब में मुस्लिम
राजपूतों(रांघड) की ताकत को भी कुचल
दिया,जिससे सदियों से उनके जबर्दस्त आतंक में
जी रहे और कौला प्रथा जैसी घिनोनी
परम्परा निभा रहे जाट किसानो को बहुत
लाभ हुआ,बंदा सिंह ने जाट किसानो को सिख
पन्थ में लाकर सैन्य प्रशिक्षण देकर मार्शल
कौम बना दिया,आज हरियाणा पंजाब में जाटों
की जो ताकत दिखाई देती है वो सिख राजपूत
यौद्धा बन्दा सिंह बहादुर के बलिदान का ही
परिणाम है.अगर बंदा सिंह मुस्लिम राजपूतो
की ताकत को खत्म न करता तो बटवारे के समय
जाटों की हरियाणा से उन्हें निकालने की
हिम्मत नहीं होती.
4-बन्दा सिंह ने यमुना पार कर
सहारनपुर,मुजफरनगर क्षेत्र में भी मुस्लिमो की
ताकत को कुचल दिया जिससे इस क्षेत्र में गूजरों
को अपनी ताकत बढ़ाने का मौका मिला और आगे
चलकर गूजरों ने नजीब खान रूहेला से समझौता
कर एक जमीदारी रियासत लंढौरा की
स्थापना की.
इस प्रकार हम देखते हैं कि बंदा सिंह बहादुर
वो वीर राजपूत था जिसने प्रथम सिख राज्य
की नीव रखी,बंदा सिंह के बलिदान का लाभ
ही आज पंजाब हरियाणा का जाट समाज उठा
रहा है,अगर उसके साथ धोखा न हुआ होता तो
देश का इतिहास कुछ और ही होता.
जय राजपूताना------
नोट-यह पोस्ट इतिहासकार खुशवंत सिंह,खजान
सिंह,मुगल इतिहासकारों एवं स्थानीय
जनश्रुतियों के आधार पर लिखी गयी है.
Banda Bahadur, a Rajput warrior
who lead t
he Khalsa armies against the
Mughal empire and founded the
first independent Sikh
kingdom.His real name was
lakshman das (27 October 1670
– 9 June 1716 Delhi) he native
from Rajori Town born in minhas
rajput family.
At age 15 he left home to
become an ascetic, and was
given the name ‘’Madho Das’’. He
established a monastery at
Nāndeḍ, on the bank of the river
Godāvarī, where in September
1708 he was visited by, and
became a disciple of, Guru
Gobind Singh, who gave him the
new name of Banda Singh
Bahadur. Armed with the
blessing and authority of Gobind
Singh, he assembled a fighting
force and led the struggle
against the Mughal Empire. His
first major action was the sack of
the Mughal provincial capital,
Samana, in November 1709.[2]
After establishing his authority in
Punjab, Banda Singh Bahadur
abolished the zamindari system,
and granted property rights to
the tillers of the land. He was
captured by the Mughals and
tortured to death in 1716.